कोटा में आठ महीने में 22 छात्रों ने की आत्महत्या....
देशभर में कोचिंग हब के रूप में प्रसिद्ध कोटा में छात्रों के मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक के बाद एक युवा छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। आए दिन होती बच्चों की मौत अन्य छात्रों के अलावा कोटावासियों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। हाल ही में 18 वर्षीय छात्र वाल्मीकि जांगिड़ ने आत्महत्या कर ली। बिहार निवासी वाल्मीकि पिछले साल से इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने के लिए ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम (JEE) की तैयारी कर रहा था। कोटा में एक महीने में इसी तरह की यह तीसरी घटना है। अगस्त में ही तीन छात्रों ने खुदकशी की है। जनवरी से अगस्त तक में 22 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया है। इनमें 14 छात्रों को तो कोटा आए हुए महज तीन से छह माह से भी कम समय हुआ था, जबकि आठ बच्चों ने तो डेढ़ माह से लेकर पांच महीने ही पहले ही कोटा में कोचिंग में दाखिला लिया था। इनके अलावा दो मामले सुसाइड की कोशिश के भी सामने आ चुके हैं। अब सवाल यह है कि आखिर क्यों कुछ महीने पहले ही आए बच्चे आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं?
अभिभावकों की उम्मीदें छात्रों पर बन रही है बोझ
कोटा में साल भर में जितने भी बच्चों ने अब तक आत्महत्या की है उनमें से अधिकांश छात्रों के गिनती मेधावी के रूप में होती थी। ये सभी छात्रों ने अपने स्कूलों में अच्छे अंक प्राप्त किए थे। एक या दो बच्चों को छोड़ दे तो सभी बच्चों के प्रतिशत 80 से ऊपर ही थे। छात्र स्कूल में 75 से ज्यादा प्रतिशत हासिल करता है तो अभिभावक सोचने लगते है कि उनका बच्चा आईआईटी, मेडिकल या फिर बड़ी सरकारी एग्जाम की तैयारी करने लायक हो गया है। इसके बाद अभिभावक उन्हें बड़े चकाचौंध वाले बड़े शहरों के कोचिंग सेंटर में दाखिला दिलवा देते है। घर-परिवार और रिश्तेदारों से दूर उन्हें हॉस्टल में अकेला छोड़ देते हैं। ऐसी जगह बच्चों की स्पर्धा देशभर के अन्य टॉपर बच्चों से होती है। इसके कारण उन पर हमेशा से पढ़ाई का दबाव बन जाता है। कुछ छात्र इस पढ़ाई के प्रेशर को सहन कर लेते है तो कुछ बच्चों पर यह बोझ बन जाती है।
आत्महत्या के लिए अपना रहे है 'डबल मेथड'
जानकारों का मानना है कि छात्रों के कई तरह के सुसाइड नोट्स से इशारा मिलता है कि अभिभावकों का बच्चों पर दबाव, एंग्जायटी और दूसरे छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा छात्रों के मौत की सबसे बड़ी वजह बन रही है। आज बड़े शहरों में पढ़ाई कर रहे बच्चे इतने दबाव में आ रहे है कि वे अपनी मौत का सबसे खौफनाक तरीका चुन रहे हैं। इनमें एक है- डबल मेथड। इस सुसाइड के ऐसे तरीके से जान दी जाती है, जिसमें किसी भी तरह जिंदा बचने की गुंजाइश ही नहीं रहे। अगर फंदे से बच जाए तो किसी और तरीके से निश्चित ही मौत हो जाए। जानकारों का कहना है कि कोटा सहित अन्य बड़े शहरों में इस तरह के मामले आए दिन बढ़ते जा रहे है। अगर इन पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो इससे भी बुरी स्थिति देखने को मिल सकती है। छात्रों के आत्महत्या के मामलों पर कोटा जिला प्रशासन का मानना है कि, इसके कई कारण हैं, जिनमें बहुत ज्यादा स्टडी के साथ अभिभावकों का दबाव, बच्चों को परिवार से दूर होने का डर, होम सिकनेस आदि मुख्य हैं। हमारी कोशिश है जो बच्चे इंजीनियर-डॉक्टर नहीं बनना चाहते, उनकी और अभिभावक की काउंसलिंग कर घर भेज दिया जाए। कोटा में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए जिला प्रशासन स्तर पर कई जरूरी कदम उठाए जा रहे है। इसमें बच्चों के लिए मोटिवेशनल सेमिनार, साइकोलॉजिकल टेस्ट के साथ रविवार के दिन कोचिंग और किसी भी प्रकार के टेस्ट से छुट्टी समेत कई निर्देश दिए हैं।